भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आने वाले दिन की ख़बर / मक्सीम तांक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:28, 25 अक्टूबर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मक्सीम तांक |अनुवादक=वरयाम सिंह |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आने वाले दिन की ख़बर
मिलती है सबसे पहले मुर्गों को
किसी को विश्वास नहीं होता उनकी बांग पर ।
पर उनकी पुकार पर
जाग उठती है बूढ़ी माँ,
जगाती है चूल्हे में सोई हुई आग को,
मेज़ पर रख देती है
रोटी के टुकड़ों को ।
उसके बाद
गाँव के ऊपर बिछ जाती हैं बादलों की तहें,
चिड़ियों के गाने की महसूस होती है गरमाहट ।

फिर हमारा जाना पहचाना सन्तरी — सारस
ले आता है कहीं से धूप,
अपनी चोंच से सहलाता है उसे
छोड़ देता है खेलने के लिए
शिशु सरसों के संग ।
— खेल लें वे भी कुछ देर
जब तक स्वयं आग का गोला
न आ धमके घोंसले के पीछे से ।

अधिक देर रुकेगा नहीं ये गोला
आ गिरेगा झोंपड़ी के बाहर बाड़ पर,
बिखर जाएगा इधर-उधर
ओस - कणों की घबराहट देखकर ।

इसी तरह निकलता है सूरज
और निकला है आज भी
हमारे पिल्कोरिशन गाँव के आकाश पर ।

रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह