सुवक्ता श्वास की जब होगी अंतिम मौन उड़ान
तो उच्छ्वास में कदापि नहीं होगी मृत्यु निहित
कभी कभी चमकते सितारे जो करते हैं आव्हान
दिव्य प्रकाश में रवि के, रात्रि में हो जाते तिरोहित ।
यह तप्त जाग्रत काया शांति से हो जायेगी नष्ट
और जीवन के रक्ताभ झरने भूल जाएँगे बहना
फिर चिंतन शीलता से होना होगा पथ भ्रष्ट
अमर आत्मा को होगा अपरिचित मिट्टी में लेटना ।
यह सत्य जान लेना ही नहीं है अंतिम मरण
किंतु नव समाधियों पर जा, जानना पवित्र विचार
मानो पावन तीर्थ यात्रा की लेना हो पूर्ण शरण
जब बहुधा जाना बंद होगा चिंतन का लगातार।
तब अतीत के झरोखों पर लहरा उठेगी घास
और मनुज मन में नहीं रहेगा जीने का विश्वास।।