भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सन्ध्या-चित्र-3 / विजयदेव नारायण साही

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:29, 18 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयदेव नारायण साही |संग्रह=मछलीघर / विजयदेव ना...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रह-रह कर छेड़ती-सी हवा
गुलाबी पतंग के पीचे
भरे-भरे
गुदगुदे गुलाबी बादल ।

कंगूरे के ऊपर का हवामुर्ग़
खिलाड़ी
पेट के सहारे नाचता है
चोंच से पूँछ पकड़ने के लिए ।