भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नंगे पाँवों की याददाश्त / ग्रिगोरी बरादूलिन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 30 अक्टूबर 2023 का अवतरण
नंगे पाँवों की भी अच्छी होती है याददाश्त
उसमें बरसों तक अक्षुण्ण बने रहते हैं
रेत के टीले
और शलजम के खेत
यौवन की राहें
सौन्दर्य का आरम्भ
और घाटियों की घास ।
उन क़दमों की पहली आहट
उन नंगे पाँवों का चलना...
अब भी बची हैं सदियों पुरानी चरागाहें
और पगडण्डियों पर चला यौवन ।
तैयार खड़ी रहती थी
दवाई के गुणों वाली पत्तियाँ —
पेट में दर्द हो या जलन
सब बीमारियों का वे होती थीं इलाज ।
व्यर्थ नहीं जाएगी
नंगे पाँवों की याददाश्त
भटकने नहीं देती वह
पराए दरवाज़ों और पराए आँगनों में ।
रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह