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नहीं रखते हैं जो आधार / हरिवंश प्रभात
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नहीं रखते हैं जो आधार कुछ अच्छे उसूलों पर।
बनाते हैं वह अपने घोसले जाकर बबूलों पर।
लिबास अपना कभी वह साफ़-सुथरा रख नहीं सकते,
बदन गन्दा करेंगे गिरके जो रस्ते की धूलों पर।
समझ लो उनको तुम नाकामियाँ ही झेलने वाले,
गँवाते हैं समय अपना जो दिन भर रह के झूलों पर।
कभी भी राम की भक्ति उन्हें हरगिज़ न भाएगी,
रखे ईमान है अपना जो रावण के उसूलों पर।
गिराएगी ज़मीं पर वह तुम्हें उस पार अगर बैठे,
नहीं बुनियाद जिस खटिया की है मज़बूत चूलों पर।
हमेशा जो ग़लत हर काम करने के ही आदी हैं,
नहीं ‘प्रभात’ देंगे ध्यान वैसे लोग भूलों पर।