भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब को छाव दिखाना मत / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 7 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब को छाव दिखाना मत।
अपना रौब जमाना मत।

जब माँगे प्यासा पानी,
घन निष्ठुर बन जाना मत।

जब पूछे जनता सवाल,
नेताजी हकलाना मत।

हाथ आये गर दिया सलाई,
घर घर आग लगाना मत।

नाव चलानी तुझे मगर,
साहिल पर इतराना मत।

वो जब कहे नयी सुनाओ,
गायी ग़ज़ल सुनाना मत।

निर्दलीय तुम बने विधायक,
कर हरक्कत बचकाना मत।

पिता की सीख है, दौलत पर,
भाई-भाई लड़ जाना मत।