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पढ़ लिखकर बेकार कोई / हरिवंश प्रभात

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पढ़ लिखकर बेकार कोई जब, बेचारा हो जाएगा।
गंगाजल का पानी भी तब तो खारा हो जाएगा।

लूट मची है देश में अपने, हम भी लूटें तुम भी लूटो,
ऐसे में क्या देश में कुछ वारा न्यारा हो जाएगा।

आरक्षण का मारा है जो हर रोज़ पलायन करता है,
क्षेत्रवाद से प्रताड़ित वह, टूटा तारा हो जाएगा।

धुंध जमी है आस पर सबकी, सत्ता से मायूसी है,
ऐसे एक दिन ध्वस्त चमकता, गलियारा हो जाएगा।

माँग रहा है देश हमारा, एक आन्दोलन और नया,
मुद्दा जो भी सामने आये, हल सारा हो जाएगा।

रोते रहने से अच्छा है हँसने की कोई बात करो,
गम का दरिया हँसी ख़ुशी से, एक फव्वारा हो जाएगा।

‘प्रभात’ आगे बढ़कर सोचो, बीती बात बिसारो भी,
अपना प्यारा देश है वरना, बनजारा हो जाएगा।