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जब से इस घर से / हरिवंश प्रभात

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जब से इस घर से तुम गयी बेटी।
आँखें रहती मेरी भरी बेटी।

घर में तुमसे ही तो उजाला था,
जलती रहती थी फुलझड़ी बेटी।

तुम तो कुछ भी नहीं बताती हो,
किस तरह कैसे रह रही बेटी।

चाँद अब रात को न उगता है,
रात लगती डरावनी बेटी।

यह ज़माना भी कितना ज़ालिम है,
इस ज़माने में है कमी बेटी।

फूल जिसको लगाया था तुमने,
उसकी दुनिया उजड़ गयी बेटी।

घर का आशीष तेरे साथ सदा,
ये समझना तू हर घड़ी बेटी।

तेरे माँ बाप ख़ुश रहें सुन के,
तेरा जीवन हो सुखमयी बेटी।