Last modified on 17 नवम्बर 2023, at 00:21

हम किसी की ख़ुशनुमा / हरिवंश प्रभात

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 17 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम किसी की ख़ुशनुमा यादों से आगे हो गए।
तुम रहो सावन में हम भादों से आगे हो गए।

पाँव सूखे हैं मेरे और सूखा-सूखा हर तरफ़,
गाँव के हम कीचड़ वह कादो से आगे हो गए।

हम कहाँ पहुँचे बताओ, आधुनिक इस दौर में,
लग रहा है बाप और दादों से आगे हो गए।

मैंने जयशंकर की जब से है पढ़ी ‘कामायनी’,
वह शराबी लगता है यादों से आगे हो गए।

उड़ रहे हैं आसमानों में हमेशा ख़्वाब के,
हम नवाबों शाह के जादों से आगे हो गए।

आस में था शाम तक, ‘प्रभात’ वह आया नहीं,
ऐसा लगता है कि वह वादों से आगे हो गए।