भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तालाब हैं अनेकों / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:26, 17 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तालाब हैं अनेको सब में कमल कहाँ है,
तालाब नाम का है उसमें भी जल कहाँ है।

आकर दिलों में बस जा और प्यास भी बुझा ले,
रहने को अब यहाँ पर कोई महल कहाँ है।

जीना बहुत कठिन है, दुश्मन बना ज़माना,
जीवन का पथ सरल हो, इसकी पहल कहाँ है।

करना है जो भी कर लो, यह क़ीमती समय है,
यह बात भी हक़ीक़त आता भी कल कहाँ है।

उड़ते हुए परिंदों से कुछ सबक भी सीखो,
उड़ना है आसमाँ में पर आत्मबल कहाँ है।

तुमको मुकाबला भी करना है ख़ूब डटकर,
तूफ़ान हो या आँधी कोई असल कहाँ है।

क़ानून पर चलोगे मिल जाएगी सफलता,
क़ानून तोड़ कर वह होता सफल कहाँ है।

जिस पर किया भरोसा वह ख़्वाब सुनहरा था,
जो था सवाल अनबूझ होता वह हल कहाँ है।