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उनकी मीठी याद कहो / हरिवंश प्रभात

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उनकी मीठी याद कहो मैं किसको दूँ,
बाकी बचा मियाद कहो मैं किसको दूँ।

टूटी खाट बिछावन काँटों-सा चुभते हैं,
अनबुझ अधूरा संवाद कहो मैं किसको दूँ।

बना दधीचि खरच किया है जीवन रस,
अस्थि शेष प्रसाद कहो मैं किसको दूँ।

भावों का उपहार सभी कुछ दे डाला,
बना है जो अपवाद कहो मैं किसको दूँ।

जीवन का दस्तूर निराला होता है,
देना है अब दाद कहो मैं किसको दूँ।

तारों की दास्तानों में तुम तो शामिल थे,
गुम चेहरा आबाद कहो मैं किसको दूँ।

अंतहीन एक सफ़र किसी का अपना हो,
हुआ ‘प्रभात’ बरबाद कहो मैं किसको दूँ।