भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन / जगदीश व्योम

Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 30 नवम्बर 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम !

अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया कपड़ों को अपने बदलना न आया लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना घर आके दिया हुआ काम निबटाना होम-वर्क करने में फूल जाय दम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

देकर के थपकी न माँ मुझे सुलाती दादी है अब नहीं कहानियाँ सुनाती बिलख रही कैद बनी, जीवन सरगम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

इतने कठिन विषय कि छूटे पसीना रात-दिन किताबों को घोट-घोट पीना उस पर भी नम्बर आते हैं बहुत कम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

-डॅा. जगदीश व्योम </poem>