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घर लौटने पर / कुलदीप सिंह भाटी

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घर लौटने पर
स्वागत में मेरे
खुलते हैं
दरवाजे के दोनों पल्ले।

और
घर में प्रविष्ट होते ही
बन्द हो जाते हैं
फिर से
दरवाजे के दोनों पल्ले।

खुलते-बंद होते
ये दरवाजे के पल्ले लगते हैं
माँ की खुली और सिमटी बाँहों-से

वो जितने उत्साहित हैं
भर लेने को
मुझे बांहों में

उतना ही उत्साहित होता हूँ
मैं भी आने को

अपने घर
और
माँ की बाँहों में।

वाकई!
माँ के आँचल
और
घर की छत का अपना सुकून है।