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निःशब्द / कुलदीप सिंह भाटी

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मैंने कहा मैं थामना चाहता हूँ
हाथ तुम्हारा।
उसने कंगन पहन लिया।

मैंने कहा मैं बसना चाहता हूँ
आँखों में तुम्हारे।
उसने अंजन लगा लिया।

मैंने कहा मैं लगना चाहता हूँ
गले तुम्हारे।
उसने हार हीरों का पहन लिया।

मैंने कहा मैं चलना चाहता हूँ
अब साथ तुम्हारे।
उसने पग-पाजेब को बांध लिया।

मैंने कहा मैं खेलना चाहता हूँ
जुल्फों तले तुम्हारे
उसने फूलों का गजरा सजा लिया।

अब वो बोली मैं भी चाहती हूँ
तुम्हारा हाथ थामना,
तुम्हारी आँखों में बसना,
तुमको गले लगाना,
तुम्हारे साथ चलना,
तुम पर प्रेम लुटाना।

पर मैं नि:शब्द था
नहीं लूटा सका मैं उसके प्रति वैसे अपना प्यार,
प्रकट किया था सहज उसने जैसे करके शृंगार।