भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ / कुलदीप सिंह भाटी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:32, 28 जनवरी 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुलदीप सिंह भाटी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खिड़कियों की खिलखिलाहट
कमरों की किस्सागोई
गलियारों की गलबहियाँ
बरामदे का बातूनीपन
दर औ' दीवार का दीवानापन
पर्दों का प्राकट्य प्रेम
रसोई का रस-माधुर्य
छतों की सतरंगी छटा
अपनत्व का अप्रतिम आँगन।
मेरे घर-बार का एक भी हिस्सा
नहीं लगता है, कुछ भी ख़ास
जब लगती है मेरी माँ उदास।