Last modified on 15 फ़रवरी 2024, at 09:31

जेबकतरे / नेहा नरुका

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:31, 15 फ़रवरी 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नेहा नरुका |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक ने हमारी जेब काटी और हमने दूसरे की काट ली और दूसरे ने तीसरे की और तीसरे ने चौथे की और चौथे ने पाँचवे की
और इस तरह पूरी दुनिया ही जेबकतरी हो गई ।

अब इस जेबकतरी दुनिया में जेबकतरे अपनी-अपनी जेबें बचाए घूम रहे हैं
सब सावधान हैं, पर कौन किससे सावधान है, पता नहीं चल रहा
सब अच्छे हैं, पर कौन किससे अच्छा है, पता नहीं चल रहा ।
सब जेब काट चुके हैं,
पर कौन किसकी जेब काट चुका है, पता नहीं चल रहा ।

जेबकतरे कैंची छिपाए घूम रहे हैं
संख्या में दो हजार इक्कीस कैंचियाँ हैं
इनमें से पाँच सौ एक तो अन्दर से ही निकली हैं
अन्दर वाली कैंचियाँ भी
बाहर वाली कैंचियों की तरह ही दिख रही हैं
कैंचियाँ जेब काट रही हैं

सोचो, जब कैंचियाँ इतनी हैं, तो जेबें कितनी होंगी ?