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जहाँ जाओ जुनून मिलता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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जहाँ जाओ जुनून मिलता है।
घर पहुँचकर सुकून मिलता है।

अब तो करती है रुत भी घोटाले,
मार्च के बाद जून मिलता है।

आज सबकी नसों में है पानी,
सिर्फ़ आँखों में खून मिलता है।

रोज़ सूरज से लड़ रहा हूँ तब,
रात कुछ पल को मून मिलता है।

कहीं भत्ता भी मिल रहा दूना,
कहीं वेतन भी न्यून मिलता है।