भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अल्पकालिक / वैशाली थापा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 3 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैशाली थापा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह बिल्कुल ऐसा था
किसी ने खटखटाया दरवाजा
और दस्तक देकर भाग गया।

हाँ ठीक वैसा ही
जैसे मैं खिड़की वाली सीट की ओर ताकती रह गयी
और सफ़र का अंत हो गया।

मुझे झूले के एक चैंबर में बैठा दिया गया
और लटका दिया गया
आकाश की अथाह ऊँचाई में।

तुम मेरे जीवन में इतने अल्पकालिक थे
कि मैं तुम्हें बता नहीं सकी
मुझे ऊँचाई से डर लगता है।