भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी गरीबी / वैशाली थापा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 3 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैशाली थापा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फटे जूतों के झरोखे से झाँकता तुम्हारा अंगूठा
तुम्हारी गरीबी का प्रतिनिधित्व नहीं करता
ना ही खड़्खड़् करती तुम्हारी साइकिल से उतरी हुई चैन,
इसको प्रमाणित करती है
बारिश में रेनकोट की जगह पहना हुआ पाॅलिथीन तो
यह दर्शाने में बिल्कुल नाकाफ़ी है
कि तुम वाकई में,
वाकई में गरीब हो।

थाली में फैली हुई रूखी-सुखी सी रोटी भी,
तुम्हारी गरीबी की ओर संकेत नहीं करती
नहीं करती
गहने-जेवर को तरसते तुम्हारे सूने अंग
कागज की मुहताज तुम्हारी खाली जेबें
हाड़ मास में लिपटी तुम्हारी काली चमड़ी
ये तमाम, ये तमाम चीज़ें
तुम्हारी गरीबी का प्रतीक नहीं हो सकती
नहीं हो सकती।

जैसे तुम्हारे एक हाथ की दान की पोटली
तुम्हारे दूसरे हाथ की बंदूक को छिपा नहीं सकती
ठीक वैसे ही,
तुम्हारी सम्पत्ति तुम्हारी उस वक्त की गरीबी को छिपा नहीं सकती
जिस वक्त तुम एक रोटी के लिए एक वेटर को जलील कर रहे थे।