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एक दिन आएगा / तसलीमा नसरीन / गरिमा श्रीवास्तव

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मैं तुम्हारे घर लौटने की प्रतीक्षा करूँगी
कि तुम्हारे लिए चाय बना दूँ
रख दूँ स्नानघर में तौलिया
स्नान के बाद पहनने के कपड़े भी रख दूँ
टॉयलेट सीट जो तुमने उठा छोड़ दी होगी
उसे नीचे गिरा दूँगी
भूल जाओ यदि फ़्लश करना
मैं फ़्लश कर दूँगी ।

मेज़ सजा रखूँगी तुम्हारे पसन्दीदा व्यंजनों से
तुम खाओगे, परोस दूँगी तुम्हारी थाल में दोहरावन
खाओगे तुम जितना, ख़ुशी होगी मुझे उतनी
खाते -खाते ही तुम बताओगे कि आज क्या-क्या हुआ,
तुम गए कहाँ -कहाँ
धन्य होती रहूँगी मैं सुन-सुनकर

तुम अपना तो समझ रहे हो मुझे
कर रहे हो प्यार
प्यार कर रहे हो इसीलिए तो अपना समझ रहे हो

धन्य होती रहूँगी जब तुम मुझे छुओगे
क्योंकि किसी और शरीर को नहीं
बल्कि प्यार कर रहे हो मेरे शरीर को
प्रेम कर रहे हो इसीलिए तो मुझे छू रहे हो
.
तुम्हें ज्वर होने पर हो उठूँगी मैं पृथ्वी की श्रेष्ठ परिचारिका
बुला लाऊँगी डाक्टर, जागती रहूँगी सारी रात
माथे पर पानी की पट्टी दूँगी, शरीर पोंछ दूँगी
घड़ी देखकर खिलाऊँगी दवा-पथ्य

मुझे बुखार होने पर
तुम कहोगे – मौसम बदल रहा है
खाँसी होने पर कहोगे – ‘यह एलर्जी है‘
पेट-दर्द होने पर कहोगे – क्या अण्ट-शण्ट खा लेती हो तुम ?
पीठ-दर्द होने पर कहोगे – इसी उम्र में यह सब ?
घुटने में दर्द होने पर कहोगे – रोग का अखाड़ा बन गई हूँ मैं
सिर-दर्द होने पर कह उठोगे – अरे, वो कुछ नहीं है, चला जाएगा अपने-आप ।
दो-एक बाल पकने पर कहोगे – तुम्हारी असल उम्र क्या है ? – बताओ तो ज़रा !
मुझे श्वास-कष्ट होने पर बोलोगे – ‘तुम्हारी अपनी लापरवाही से ही हो रहा है श्वास-कष्ट’

एक दिन मुझे पहाड़ घूमने की इच्छा होगी
तुम बोलोगे – मुझे समय नहीं है
मैं कहूँगी – मेरे पास है
जाऊँ ?
तुम अकेली जाना चाहती हो ?
हँस कर बोल उठूँगी – हाँ अकेली ही जाऊँगी
तुम अट्टहास कर उठोगे सुनते ही
बोलोगे – ‘पागल हुई हो तुम! मेरी देखभाल कौन करेगा ?
मेरा खाना कौन बनाएगा ?
खाना परोस खिलाएगा कौन ?
मेरे कपड़े कौन धोएगा
कपड़े तहकर रखेगा कौन ?
मेरा घर -द्वार ,बिस्तर सामान साफ़ करेगा कौन ?
घर की रखवाली करेगा कौन ?
पानी देगा कौन बगीचे में ?

कह उठूँगी मैं
‘तुम’
चढ़ जाएँगी तुम्हारी त्योरियाँ
सम्भल कर कह उठूँगी मैं
‘तुम्हारी नौकरानी करेगी’
तुम कहोगे
नौकरानी का बनाया खाना पसन्द नहीं आता मुझे
तुम जिस अपनापे से करती हो सब कुछ
वैसा नौकरानी तो नहीं करती न ।

मैं हँस पडूँगी
फव्वारा फूट पड़ेगा आन्तरिक सुख का
क्योंकि नौकरानी के बनाए खाने से मेरे भोजन को अच्छा बताया है तुमने .
मैं जो दासी नहीं, दासी से अलग हूँ
ये गृहस्थी जो दासी की नहीं, मेरी है
मन-मयूर नाच उठेगा मेरा इस स्वीकृति से तुम्हारी

एक दिन समन्दर देखने जाने की इच्छा से
मैं सजाऊँगी अपना सूटकेस
देखते ही हरिण पर अचानक झपटते लकड़बग्घे की तरह
मुझपर झपट पड़ोगे
मुझको चींथते रहोगे
कर दोगे लहूलुहान
रक्त देख कर आत्मीय -मित्र कहेंगे
ये रक्त नहीं, प्रेम का प्रतीक है।
.
बोलेंगे – प्यार करता है । तभी तो तुम्हें अपने पास चाहता है ।
दूर होकर मुझसे दो घड़ी भी जी नहीं पाओगे,
इसलिए मुझे चाहते हो
मैं आँख का पानी पोंछकर हँस दूँगी ।

तुम्हारी पसन्द की रसमलाई बनाने को रसोई में घुसँगी
एक दिन मैं तुम्हें चाय बनाकर नहीं दूँगी
चप्पल का जोड़ा पैर के आगे नहीं रखूँगी
तुम्हारा टायलेट फ़्लश नहीं करूँगी
तुम्हारी पसन्द का भोजन नहीं बनाऊँगी
एक दिन तुम्हारी बीमारी में जागी नहीं रहूँगी
खुद अस्वस्थ होने पर डाक्टर बुलाऊँगी
घड़ी देखकर दवा -पथ्य खाऊँगी
एक दिन अपने दोस्तों के साथ ढेर-सा समय बिताऊँगी
एक दिन ऐसा होगा कि पहाड़ देखने की चाहत होने पर
पहाड़ घूम आऊँगी,
समन्दर में नहाने की चाहत होने पर
नहा आऊँगी समन्दर में एक दिन !

मूल बंगला भाषा से अनुवाद : गरिमा श्रीवास्तव