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असामंजस्य / उदय नारायण सिंह 'नचिकेता'

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सभ्यताक टूटा खाम्ह
ठाढ़ अछि पृथ्वीक छाती पर; बगल में अतल खाधि।
एकटा पर मनुष्य आ' एकटा पर पशु-
खाम्हक माथ पर चढ़बाक चेष्टा करैछ।
चारू कात पशु सब ठाढ़ अछि।
मनुष्यो सब ठाढ़ अछि ।
बहुत संवाद-दाता लोकनि उत्सुक दृष्टियें फलाफल निहारैछ।
मनुष्य टू डेग उठैछ, दू डेग गिरैछ,
पशुक प्रतिभू बानर
दू डेग उठैछ, एक डेग गिरैछ।
मनुष्य विफल हैछ।
बानर उठैत उठैत एक समय
मेघ में विलीन भ' गेल ।
सांवादिक सब मन्तव्य केलन्हि
एतेक ऊँच उठत वानर ?
देखू जा'कए खाधि में कदाचित् ओकर हड्डी-गुड्डी चूर-चूर भ' कए पड़ल ने हो !
सब नीचा हुलकि कए देखलक-
डाइनोसोरसक हाड़ पड़ल छलैक।