भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वापसी / विनोद भारद्वाज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:26, 3 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पलक के लिए
मैं हमेशा लौट आती हूँ
तुम मुझे गुम हो गई न समझना
फिर सोचती हूँ कि क्या यह दुनिया सचमुच
लौटने लायक हो गई है
क्या मुझे चुपचाप फिर लौट जाना चाहिए
उस बर्फ़ के ज़बरदस्त ढंग से
जमे हुए एकान्त में
वो जो कवि है
वह बेकार ही ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटे जा रहा है
फिर वह बदहवास होकर बड़बड़ा रहा है
मुझे एक तो दो श्रोता
मेरे पास दुनिया को बदलने के कुछ गुप्त तरीके हैं ।