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ज़रूरत / साधना सिन्हा
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यह प्यार नहीं है
ज़रूरतें हैं
तुम्हारी मेरी
बच्चों की
जो, बांधे रखती हैं
तुमको–मुझको
बच्चों को
एक बंधन जो
कहलाता है अटूट
जाता है बन
अभ्यास अटूट
हम सबका
व्योम-विशाल
सिमटकर
बन कैदी
घर की
चार दीवारों का
हो जाता है
अपरिहार्य-अनिवार्य
जरूरत
रात-दिन की