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कुहासा / साधना सिन्हा

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यह
क्यों होता है
अहं का कुहासा
घेर लेता है हरदम

वही छत
वही दीवारें
और हम
एक दूसरे के लिए
अनजबी हो जाते हैं

उड़ती निगाहों से देखते हैं
और अपने-अपने
काम में व्यस्त
हो जाते हैं
चलता है कुछ दिन
यह क्रम
 
हम अकेले हैं
कितने अकेले हैं
मेरा, और शायद
तुम्हारा भी
एकाकीपन
औपचारिकता के आवरणों
को दूर फेंक देता है
 
और हम
अपने एकाकीपन के साथ
एक ही शय्या पर
आह्लाद, अवसाद से
अनछुये
पड़े रह्ते हैं
नई सुबह होने तक ।