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बंजर मैदान / हरभजन सिंह / गगन गिल

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 बंजर मैदान
यहाँ किसने बिछाए हैं ?
कौन इन्हें धूप में डालकर सूखने एक बार
भूल गया कि ये भी कुछ हैं ?

न हरी घास, न सूखे काँटों की झाड़ियाँ
ये दाद-खाए तन
इन पर न कोई ज़ख़्म, न ज़ख़्म की दास्तान
कि जिसकी छाया में बैठ जाएँ
कोई सरकण्डा तक नहीं
कि बंजारे जलाकर रात भर ठण्ड ही भगा लें
तब भी
इस बंजर के गिर्द बाड़ क्यों हैं ?

पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल