Last modified on 26 मई 2024, at 18:55

आग / हरभजन सिंह / गगन गिल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 26 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरभजन सिंह |अनुवादक=गगन गिल |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आधी-आधी रात
मुझे अम्मा ने झिंझोड़ जगाया
कहने लगी तेरे घर को किसी ने जलाया
फाँद कर दहलीज़ें आग भीतर
आन खड़ी हुई है
दीवारों - छतों को चाट रही है

आग फाँदकर मैं बाहर निकला
नंगी ललकार की तरह
बाहर गली में बरसती थी गोलियाँ
बौछार के बीच
सहम गई मेरी ललकार

आग फाँदकर मैं फिर भीतर चला आया
अपने बच्चे को लगाकर गले, मींची आँखें
मन में आया
सारी उम्र बिताई
चिन्ता-चिंगारियों में
मरण समय तो निश्चित लेट लूँ घड़ी-दो-घड़ी

यह आग हमारा क्या कर लेगी
हम जो खाएँ रोज़ आग की फ़ीकी रोटी
जो अपने हाँड़ सेंकते जन्म बिताएँ
रात सवेरे पकने वालों को
आग भला क्या कहेगी ?

पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल