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इरादा वही जो अटल बन गया है / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"

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इरादा वही जो अटल बन गया है
जहाँ ईंट रक्खी, महल बन गया है

ख्याल एक शाइर का आधा-अधूरा
मुकम्मल हुआ तो ग़ज़ल बन गया है

कहा दिल ने जो शेर भी चोट खाकर
मिसाल इक बना, इक मसल बन गया है

पुकारा है हमने जिसे आज कह कर
वही वक्त कम्बखत कल बन गया है

ये दिल ही तो है, भरके ज़ख्मों से महरिष
खिला, और खिल कर कमल बन गया है