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हिमालय वंदना / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'
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गंगा-यमुना के उद्गम हे!
यतियों के आवास विमल!
आर्य-भूमि के भव्य मुकुट हे!
श्रृंग-सौध उत्तुंग धवल!
योगीराज! हिमवान नगेश्वर!
श्वेत छत्रधर श्वेत शिखर!
हे शंकर के पुण्य धाम हे!
साधक जागरूक सत्वर!
गंधर्वों के लोक मनोहर!
अलका के सुदेश निर्मल!
यक्ष-किन्नरों के क्रीड़ास्थल
स्वर्ग सहोदर! हे गिरिवर!
ओषधियों की अक्षय निधि से!
मणि-माणिक के है अगर!
हे युग-युग के ज्ञान विवर्धक!
हे अजेय! हे दृढ़ व्रत-धर!
हे महान! हे पूजनीय!
है वंदनीय! हे गेय सतत!
हे विराट! गिरिराज हिमाचल!
हैं प्रणाम तुमको शत शत!