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मैंने अपना नज़रिया ही बदला जरा / अर्चना जौहरी

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मैंने अपना नज़रिया ही बदला ज़रा फिर तो सारा नजारा यूँ बदला कि बस
ऐसा क्यूँकर हुआ वैसा क्यूँ ना हुआ सोचने का ही धारा यूँ बदला कि बस

मैं ख्यालों में अपने ही रहती थी जब मुझको लगती थी दुनिया बुरी ही बुरी
मैंने आँखों से चश्मा उतारा ज़रा पानी मीठे में खारा यूँ बदला कि बस

उसकी ज़िद इम्तेहाँ वह लिए जाएगी जीतने की भी मैंने थी खाई कसम
जिन्दगी से ज़रा दोस्ती मैंने की ग़म ख़ुशी में वह सारा यूँ बदला कि बस

मुझमें है एक मैं तुम में है एक तुम तुम और मैं की कहानी पुरानी बड़ी
साथ की जब एहमियत पता चल गई 'हम' में मेरा तुम्हारा यूँ बदला कि बस

सबके हाथों में पत्थर भी देखे थे और मेरा घर भी तो शीशे का ही था बना
वो ही शीशा जो मैंने दिखाया उन्हें पत्थरों का इशारा यूँ बदला कि बस