Last modified on 2 जून 2024, at 00:16

तारीफें बस बोलकर नहीं की जातीं / शिवांगी गोयल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:16, 2 जून 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवांगी गोयल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शीशे के गिलास को थामे मेरी उंगलियाँ,
खुद से ज़्यादा खूबसूरत दिखती हुई
गिलास के आर-पार देखती मेरी नज़रें
समझती हैं कि पानी पारदर्शी होता है

पानी की एक बूंद, स्वाति नक्षत्र में
एक सीप में जाकर मोती बन जाती है;
वो मोती मेरी उंगली की अंगूठी में
मुस्कुरा कर देख रहा है उन आँखों को
जो सामने बैठी मुझे एकटक निहार रही हैं
उन अजनबी आँखों में चमक है
मैं पानी-सी पारदर्शी हो गई हूँ

मैंने अंगूठी का मोती देखते हुए
सिर्फ़ इतना समझा है कि
तारीफ़ें बस बोलकर नहीं की जातीं।