भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूर बहुत दूर / केतन यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 11 जून 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केतन यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आदमी चला जाता है
छोड़कर खूँटी पर कमीज़
कमीज़ में छोड़कर गंध
गंध में छोड़कर अपनी साँस
आदमी चला जाता है
छोड़कर कागज़ पर कविता
कविता में जीवन का गीत
गीत में आत्मा का छंद
चला जाता है आदमी इतनी दूर
कि दूरी धीरे-धीर
संज्ञा से विशेषण हो जाती
और पुन: धीरे-धीर
विशेषण से संज्ञा हो जाती
दूरी का अंदाजा शायद आदमी लगा पाता है
कमीज़ गंध साँस कागज कविता गीत छंद
सबसे दूर बहुत दूर
चला जाता है आदमी जब।