Ravi Sinha
Jun 28, 2024, 5:02 PM (7 days ago)
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ख़ुद का भी जायज़ा लिया जाये
फिर ज़माने से कुछ कहा जाये
KHud ka bhii jaa.ezaa liyaa jaaye
Phir zamaane se kuchh kahaa jaaye
बूद गहरा है तेज़-रौ है हयात
आइये डूबकर बहा जाये
Buud gahraa hai tez-rau hai hayaat
Aa.iye Duub kar bahaa jaaye
ख़ुद में गहराइयाँ समेटे हूँ
किस बुलन्दी को अब चढ़ा जाये
KHud me.n gahraa.iyaa.n sameTe huu.n
Kis bulandii ko ab chaDHaa jaaye
यूँ तो ख़ल्वत है बे-नियाज़ी है
शोर हर सम्त क्यूँ बढ़ा जाये
Yuu.n to KHalvat hai be-niyaazii hai
Shor har samt kyuu.n baDHaa jaaye
रौशनी तो ख़ला में भटके है
और आलम ये फैलता जाये
Raushnii to KHalaa me.n bhaTke hai
Aur ‘aalam ye phailtaa jaaye
हम हैं नाज़िर हमीं नज़ारा हैं
दरमियाँ गर ख़ुदा न आ जाये
Ham hai.n naazir hamii.n nazaaraa hai.n
Darmiyaa.n gar KHudaa na aa jaaye
तुख़्म क्या बोइये क़दामत का
क्यूँ न जंगल को ही चला जाये
TuKHm kyaa bo.iye qadaamat kaa
Kyuu.n na jangal ko hii chalaa jaaye
शब्दार्थ :
बूद – हस्ती, अस्तित्व (existence); तेज़-रौ – तेज़-रफ़्तार (swift); हयात – ज़िन्दगी (life); ख़ल्वत – एकान्त, अकेलापन (solitude); बे-नियाज़ी – उदासीनता, निस्पृहता (unconcern); सम्त – ओर, दिशा (direction); ख़ला – शून्य (space); आलम – ब्रह्माण्ड (universe); नाज़िर – दर्शक (spectator); नज़ारा – दृश्य (spectacle); तुख़्म – बीज (seed); क़दामत – प्राचीनता (antiquity)