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इश्क़ में हुआ हो भले धोखा / कात्यायनी
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इश्क़ में हुआ हो भले धोखा
हुस्नो-इश्क़ को
समझा नहीं कभी धोखा।
यूँ ही भरम कई हुए
ज़िन्दगी में,
पर ज़िन्दगी को कभी
भरम नहीं समझा।
जितना हारे
हार न मानने की ज़िद बढ़ती गई ।
रचनाकाल : सितम्बर 1997