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प्रेम की तलाश / निधि अग्रवाल

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जब देना चाहो किसी स्त्री को प्रेम
एक पिता बन कर जाना,
चूमना उसके माथे को, बालों को सहलाना,
आगोश में भर विश्वास दिलाना
कि हर विपदा को उस तक
तुमसे होकर गुज़रना होगा।
अँगुलियों के पोरों से पोंछना आँसू,
और कहना कि
अपनी सभी अपूर्णताओं के साथ
वह तुम्हारे लिए सम्पूर्ण है।

जब पाना हो किसी स्त्री का प्रेम
एक शिशु बन जाना,
वह स्नेहिल दृष्टि से अपलक निहारेगी,
चूमेगी तुम्हारी आँखों को बारी-बारी।
सीने से लगा, भर लेगी अपने भीतर
तुम्हारे सब संताप,
तुम्हारी रक्षा करेंगी
कवच बनकर उसकी दुआएँ।

पुरूष दर्प से भरी देह लेकर
प्रेम की तलाश कदापि न करना,
क्योंकि तब स्त्री भी
एक देह भर बन जाएगी।