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परिधि / निधि अग्रवाल

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स्त्री उतनी ही अधिक स्वतंत्र है,
जितनी अधिक परिधि
उसके पुरुष ने रेखांकित की है।
अलग-अलग वर्गों के वृत्त
हैं अलग-अलग नाप लिए,
किन्तु स्त्री क्या कभी
ख़ुद त्रिज्या निर्धारित कर पाई?
पुरुष के अनेक रूप हैं-
पिता, पुत्र, भाई, प्रेमी, पति
स्त्री हर रूप में स्त्री ही रही।
और यह स्त्री बने रहने का संघर्ष
क्या कुछ कम है,
पुरुष चाहता है,
उसे देवी बना पूजना
या पतिता कह अपमानित करना
वृत्त की किसी चाप में भी
स्त्री की स्वेच्छा का ज़िक्र नहीं है।