चादर / महेश कुमार केशरी
छूने से आदमी भी
छुआ जाता है
ऐसा दादी को
अक्सर कहते हुए सुना
चाची को जब दूसरा
बच्चा हुआ तो एक
सांँवली-सी औरत,
हमारे घर रोज़ - आती
और ,
वो चाची की ख़ूब
देर तक मालिश किया करती
करीब -दो - दो घंटे
तक
हमलोग देखकर
अचंभित होते कि कोई
औरत होकर इतनी देर
तक कैसे देह की मालिश
कर सकती है ?
उस, औरत के जाने
के बाद दादी , उस चादर
को बहुत देर तक धोतीं
जिस पर लेटकर चाची
तेल लगवातीं ।
और, बिना मैली हुई
चादर को भी बार- बार
धोतीं ।
मैं उनकी बगल में
खडा़ होकर उनको
ताकता और दादी से
पूछता, दादी आप साफ़
चादर को भी बार- बार ,
रोज
क्यों धोतीं हैं ?
दादी, प्यार से मेरे
सिरपर, हाथ फेरतीं ।
और कहतीं-
बेटा "चमईन" जात है
चादर में छूत लग जाती है !
चादर, धुलने के बाद
एक बार, फिर, से
सफेद और चमकने
लगती
वो, सांँवली औरत
उबटन का काम ख़त्म
करने के बाद
हमारे घर, से ले जाती
बची हुई, बासी, रोटियाँँ -
भात और
सब्जियाँँ ।
सफेद, चादर को धोने
से पहले और धोने
के बाद उसपर मैनें
कभी कोई दाग नहीं देखा !