Last modified on 15 अगस्त 2024, at 10:43

गुलाब की कलम / राहुल शिवाय

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:43, 15 अगस्त 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाथों में
मेरे गुलाब की
एक कलम है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ

घर के जिस
कोने में
तुलसी सूख रही है
उस कोने में
क्या यह पोषण
को पाएगी
जिस बरगद के
नीचे धूप
नहीं आती है
क्या यह
अपनी बाँह
वहाँ पर लहराएगी

जहाँ सभी ने
अपना-अपना
रखा हरम है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ
इस घर में
धरती से ज़्यादा
चट्टानें हैं,
क्या इसकी
कोमल जड़ को वे
बढ़ने देगीं
जहाँ रोज़
पत्थर पर पत्थर
बोते हैं सब
वहाँ इसे क्या
कोमल मन को
गढ़ने देंगीं

जहाँ हृदय ने
कृत्रिमता का
रखा भरम है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ।