भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रामायण / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:43, 15 अगस्त 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितना समझा रामायण को,
क्या अपनाया है
‘मरा-मरा’ कहते अधरों पर
‘राम’ न आया है

स्वर्ण-हिरण का
दिखना क्या है
कब इसको हम समझ सके ?
मन की सच्चाई
बतलाते
माँ शबरी के बेर थके

‘रामराज’ को
क्यों लंका का वैभव भाया है ?

हुआ दशहरा
रावण फूँका
पर दिखता बदलाव नहीं
सत्य पाश में
बँधा पड़ा है
हनुमानों में भाव नहीं

सौमित्रों में घर-भेदी का
रूप समाया है

नल-नीलों की
फौज खड़ी है
पुल लेकिन हर बार गिरे
अपनी-अपनी
नैया लेकर
राम नाम से लोग तिरे

मुँह में राम बगल में छूरी
जग की माया है।