मैं बन्दूक के ख़िलाफ़ हूँ / नेहा नरुका
मैं बन्दूक के ख़िलाफ़ हूँ ।
यदि कोई उसे लेकर मेरी हत्या करने आएगा,
तो अपनी जान बचाने के ख़ातिर
मैं उसका हाथ कुचल सकती हूँ,
गड़ा सकती हूँ अपने दाँत उसके शरीर पर कहीं भी,
छीनकर चला भी सकती हूँ
उस हत्यारे इरादे पर बन्दूक,
जिससे वह मुझे मारने आया था ।
बचाव की इस प्रक्रिया में यदि वह मर जाए,
तो उस मरे हुए के साथ ही मैं बन्दूक को
जलाना या दफ़नाना पसन्द करूँगी,
न कि सम्भालकर उसे फ्रेम में जड़वाना,
वीरगाथा काल के पुरखों के साथ बैठक में सजाना
और उसके लिए मंच पर जाकर
दोनों हाथ जोड़ते हुए
विनम्रता से वीरांगना पुरस्कार पाना ।
क्योंकि मैं बन्दूक के ख़िलाफ़ हूँ,
इसलिए मुझे बन्दूक के ख़िलाफ़ कही गई हर बात से प्रेम है ।
मैं दुनिया के तमाम बच्चों को सुनाना चाहती हूँ, बन्दूक के ख़िलाफ़ लिखी गईं बातें,
ताकि वे खिलौने वाली बन्दूक की ज़िद न करें,
ताकि वे वयस्क होकर बन्दूकों के कारोबारी बनने के लक्ष्य से बचें,
क्योंकि मैं बन्दूक के ख़िलाफ़ हूँ ।
सिर्फ़ मैं या सिर्फ़ वे क्यों ?
दुनिया के हर इनसान को
बन्दूक, बम और जंग के ख़िलाफ़ होना चाहिए ।
(2017 या 2018)