आइ एहि क्षण / दीपा मिश्रा
आइ एहि क्षण हम जखैन एकटा कविता लिख रहल छी
हमर मोनमे अनेक स्त्री घुरिया रहल छथि
ओ स्त्री जे एखैन भनसाघरमे पैलीसँ भोजन बनेबा लेल सिदहा नपैत हेतीह
ओ जे सोहारीकेँ चुल्हाक आगि पर फुला रहल हेतीह
ओ स्त्री जे खेतमे ठेहुन तक पानिमे ठाढ़ भेल धान रोपैत हेती
ओ जे भरि भरि छिट्टा राखल गोबरसँ सनल हाथसँ देबाल पर गोइठा पाड़ैत हेती
ओ मज़दूर स्त्री जे हमर घरक पुबरिया कात बनैत मकानक सीढ़ी पर ईंटाक गेंट माथ पर लेने जा रहल अछि
ओ जे जनमौटीकेँ बालू पर बिछाओल ग़मछा पर दूध पीबि निचेन सूता देने अछि
ओहो स्त्री सब जे लोकलक जनानी डिब्बामे बैसल
नकली कान बला गहना बेचैबाली संग हँसि बाजि रहल अछि आ दर्दक रेख उभरि जाइत छै जखैन रतुका मारि मोन पड़ैत छै
ओ स्त्री जे अपन मानसिक रूपसँ विक्षिप्त बेटीकेँ हाथ पकड़ने सड़क पार करा स्कूल पहुँचा रहल अछि
ओहो जे सिग्नल चौराहा पर
गुलाब पकड़ने हमर गाड़ीक शीशा खटखटा रहल अछि
हम आइ एहि क्षण जखैन ई कविता लिख रहल छी
हमर मोनमे उधिआएल आबि रहल छथि
हेंजक हेंजक स्त्री अन्हर बिर्रो जेकाँ
बाढ़िक प्रचंड आवेग जेना
किओ अपस्याँत भेल,किओ हकमैत,किओ कनैत त' किओ चिचियाइत
एम्हर हम क़लम संग बैसल छी ओम्हर एहि समय
कतौ भ' रहल होएत कोनो स्त्रीक बलात्कार
कतौ कत्ता ल' के ओकरा काटि काटिके बोरामे भरैत हेतै किओ चंडाल
कोनो छात्रा फंसरी लगेबाक प्रयास करैत होएत त' किओ बिनु ब्याहल माए ऊँच बिल्डिंगसँ छलांग मारबाक लेल सोचि रहल होएत
कोनो नोर पोछैत माए के पुत्र वृद्धाश्रमक कक्ष तक छोड़ि घुरैत हेतैथ
त'कोनो स्त्रीके आपरेशन लेल हास्पिटल के कक्षमे नर्स सब स्ट्रेचर पर ल' जा रहल हेतैथ
हम सोचैत छी एहि क्षण जखैन हम ई कविता लिख रहल छी
दुनियामे कतेक किछु भ' रहल हेतै
जरैत होएत कोनो स्त्रीक लहास
प्रतीक्षामे राखल हेती शवदाहगृहमे कोनो प्रसूति कालमे मृत भेल माए
दूर कोनो देशमे बमबारीक बाद बिछैत हेती कोनो स्त्री अपन परिजनक बारूदसँ क्षत विक्षत भेल देहक टुकड़ी सब
गबैत हेती किओ मर्सिया
आ शोकमे डूबल होंसतैथ हेतीह पुरान समयक फोटो बला एल्बम
हमरा इहो बूझल हमर ई कविता कहिओ ओहि स्त्री तक नै पहुँचत जकरा लेल हम ई लिखि रहल छी
किएक त' ओहि स्त्रीकेँ कहिओ ई पढ़बा लेल समय नहि भेटतैन...
सब कहैये आब स्त्री विमर्श बहुत पुरान बात भेल
अंतरिक्ष तक डेग बढ़ा देने अछि स्त्री
पांखि खोलि उड़ि रहल मनक अकासमे
हमहूँ मानैत छी मुदा हमर क़लम किछु आर सोचि रहल
नीक सब किछु कल्हुका अखबारमे छपा जाएत
आ नुका जेतीह ओ सब स्त्री पृथ्वीक खोहमे
जे आइधरि नुकायल छथि
जिनका लेल अदौसँ लिखल जा रहल कविता
जे दुःखसँ मात्र कविता टामे उबरि पबैत छथि.