Last modified on 26 नवम्बर 2024, at 11:35

मैं मारी जाऊँगी / अनामिका अनु

Adya Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 26 नवम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं उ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं उस भीड़ के द्वारा मारी जाऊँगी
जिससे भिन्न सोचती हूँ

भीड़ सा नहीं सोचना
भीड़ के विरूद्ध होना नहीं होता है
ज्यादातर भीड़ के भले के लिए होता है
ताकि भीड़ को भेड़ की तरह
 नहीं हाँका जा सके

यह दर्ज फिर भी हो
कि
भिन्न को प्रायः भीड़ ही मारती है।