राजस्थान / अनामिका अनु
मैं सच कहती हूँ तिरु
मेरा कोई सुख छिपा है राजस्थान में
मुझे उस विराने की भी किकोल और पुकार सुनाई पड़ती है जहाँ जन्म नहीं लेते हैं बच्चे और जहाँ कोई नहीं झगड़ता किसी से
तिरु! जरूर कोई गुलाबी नगरी में ऐसा होगा
जिसकी आँखों के कटोरे की दूध भात हूँ मैं
सिरोही में होगा कोई जिसकी केले के छिम्मियों जैसी होंगी उंगलियां
होगा राजसमंद में कोई जो सबसे सुंदर लिखता होगा
होगा चुरु में कोई जो सुबह में उठकर बीज चुगता होगा
फूल लिखता होगा
जड़ को नीर पिलाता होगा
होगा अजमेर में कोई पाँच वक़्त का नमाज़ी
जो मेरे लिए सुंदर नज़्म लिखता होगा
पुष्कर में कोई है
जिसकी आँखें भुकभुकाती हैं
टार्च की तरह
दौसा में सांगवान का पेड़ है
चश्मा लगाता है
झुंझुनूं-सीकर-बूंदी से होकर वह कौन लौटा है
जो अपनी किताब के किनारे में अना लिखकर
रोता है
पाली,भीलवाड़ा मैं तुम्हारे लिए लिखती हूँ
भरतपुर और अलवर में कोई पढ़ता है मेरी कविता
टोंक शहर की सनोवर काज़मी कहती है:
जब तक लिखोगी
तभी तक जिओगी लड़की…
देखना तिरु
लीची शहर की इस लड़की को जो कभी
प्रेम हुआ किसी से
तो वह या तो अंधा गूंगा बहरा निरुपाय कोई व्यक्ति होगा या राजस्थान का कोई कवि होगा।