Last modified on 3 दिसम्बर 2024, at 00:05

भूल जाते हुए / प्रिया वर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 3 दिसम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रिया वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्या पिता अब भी होंगे कहीं
कहीं से क्या मुझे देखते होंगे
क्या फिर से लौट आयेंगे वे पितृ बनकर इस पितृपक्ष में
जिस की परिणति में
पाएँगे मुझे मग्न
मैं कितनी नग्न हूँ स्मृति में उनके लिए
वे कैसे चीन्हेंगे
कि क्या मालूम हो वे सुनते हों मेरी पुकारें
उनको सच में ध्यान घिर आता हो मेरा
क्या वे बादल होंगे भादौ के
या घास या हवा या कि होंगे वे कुछ भी नहीं
पर होंगे क्या

वे झाँक लेते होंगे क्या
और फेर लेते होंगे दृष्टि उचाट होकर बीत चुके उनके संसार से
जिसमें चलती जाती हूँ मैं सीधी रेखा में
रास्ता समझकर
खाते पीते सोते जागते हँसते हुए से भी अधिक
भूल जाते हुए अपने पिता को