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धन्यवाद / प्रिया वर्मा
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धन्यवाद कहूँगी
उस संतान को जिसने मेरे क्रोध भरे शब्दों में पिता बनकर मुझे फटकारा
जिस छत ने मुझे सबसे भारी दिन में दिया एकान्त
उस को रखूँगी
सबसे कृतज्ञतापूर्वक
याद में स्पंदित
माता पिता से जनित रोष
भूमि में रोपने का फ़ैसला क़लम की नोंक से तोड़कर
नदी में बहा आऊँगी
रो दूँगी
सीधे-सीधे अपमान बिना कोई गहरा घाव लिए
उतर जाऊँगी तुरन्त प्रेमी के मन से
ज्यों ही विदा मांगेगा वह
इसके लिए अपनी बन्द मुट्ठियों को खोलूँगी
और गहरी साँस भरकर
पहली माफ़ी ख़ुद को दूँगी
और दोषमुक्त हो जाऊँगी।
जीती चली जाऊँगी।