Last modified on 11 दिसम्बर 2024, at 23:42

साथी मेरे हर पल जी रे / दिनेश शर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:42, 11 दिसम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साथी मेरे हर पल जी रे
कड़वा मीठा सब रस पी रे

दुनिया की इस मधुशाला में
मान वक़्त को इक साकी रे

जीवन तो बस एक समर है
ले धारण कर तू ख़ाकी रे

आदर सबसे पाना है तो
जीभ पड़े काबू करनी रे

तेरी मेरी ख़ूब जमेगी
तू है मेरा हमराही रे

पूरा होगा हर सपना जब
हों ग़म औ ख़ुशियाँ साझी रे

विचरण करते नील गगन में
हम सब तो हैं बस पाखी रे