भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुख को भी तो गाओ भाई / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:44, 24 दिसम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जीवन में क्या दुख ही दुख है
सुख को भी तो गाओ भाई
हर पल बस पीड़ा गायन से
जीवन में अवसाद बढ़ेगा
आँसू की बहती नदिया में
सुख का तिनका कहाँ बचेगा
गीतों को मरहम-सा कर दो
ज़ख्मों की जो बनें दवाई
दुख के भीषण शिशिरकाल में
स्वर्णिम यादों का ज्यों कंबल
गीत बनें ममतामय लोरी
और बनें हारे का संबल
सुख-दुख तो आते रहते हैं
यहाँ नहीं कुछ भी स्थाई
गीतों में गेहूँ, गुलाब हो
अमराई हो, हरसिंगार हो
नदिया की कल-कल हो उनमें
पहली वर्षा की फुहार हो
कुछ मीठे हैं बोल ज़रूरी
बहुत हो चुकी हाथापाई