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दुख / एकांत श्रीवास्तव
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दुख वह है
जो आँसुओं के सूख जाने के बाद भी
रहता है
ढुलकता नहीं मगर मछली की आँख-सा
रहता है डबडब
जो नदी की रेत में अचानक चमकता है
चमकीले पत्थर की तरह
जब हम उसे भूल चुके होते हैं
दुख वह है
जिसमें घुलकर
उजली हो जाती है हमारी मुस्कान
जिसमें भीगकर
मज़बूत हो जाती हैं
हमारी जड़ें ।