भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिरी ख़ातिर ये नादानी करोगे / ‘अना’ क़ासमी
Kavita Kosh से
वीरेन्द्र खरे अकेला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 31 दिसम्बर 2024 का अवतरण
मिरी ख़ातिर ये नादानी करोगे।
तुम अपनी आँख को पानी करोगे।
मिरी टोपी की क़ीमत पूछते हो,
मिरे तुम दर की दरबानी करोगे।
उतर कर दिल से खंजर पूछता है,
कहो किसकी सनाख़्वानी करोगे।
जुनूँ हद से गुज़रता जा रहा है,
तुम अब सहरा में सुलतानी करोगे।
अदावत में बहुत कुछ कर चुके हो,
मुहब्बत में भी मनमानी करोगे।
फलों से शाख अब झुकने लगी है,
कहाँ तक तुम निगहबानी करोगे।