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कालाय तस्मै नमः / खण्ड-13 / भारतेन्दु मिश्र

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601.
जिसको उड़ना आ गया उसका सारा देश
बाज-सर्प-नेता सभी, अब हो गये विशेष।

602.
पुरुष पत्नियाँ बदलते, जैसे पैंट कमीज
सीख रही हैं नारियाँ, भी यह नई तमीज।

603.
विधवा थी सबला बनी, अब दे रही सलाह
सखियों तुम करना नहीं, सदाचार से ब्याह।

604.
लिखा कुमुदिनी ने यहाँ, रात-रात उल्लास
किंतु कमल को ही मिला, सूरज का विश्वास।

605.
एक कंकड़ी फेक कर, देख रहे वे वृत्त
जल का तल हिलता रहा, यत्र-तत्र सर्वत्र।

606.
नदी जम्हाई ले रही, खुली समय की दाढ़
घाव हरे करने लगा, रोज़ इधर आषाढ़

607.
जिन चोरों का ज़िक्र है, उसमें शामिल शाह
काजी अब हैरान है, किसका बड़ा गुनाह।

608.
दो नेता लड़ते रहे, लिये जाति की ढाल
जनता समझी देर से, दोनों हैं घड़ियाल।

609.
बरस चुके हो ख़ूब तुम, नाहक मुझ पर आज
बे-मौसम बरसात का, अब तो खोलो राज।

610.
सम्बंधों के सेतु में, पड़ने लगी दरार
समय-हवा-सूरज सभी, करते हम पर वार।

611.
तुड़ी-मुड़ी-सी जिंदगी, सपनों के संघर्ष
रोज सीढ़ियाँ चढ़ उतर, मिला न मन भर हर्ष।

612.
राजनीति की गोटियाँ, अब कर रहीं कमाल
कवियों ने भी ओढ़ ली, भ्रम की महँगी शाल।

613.
नदिया नंगी रनाचती, उड़ती रेत अपार
वृक्ष गड़ गये शर्म से, देख समय की धार।

614.
फिर उत्सव मुद्रा बनी, फिर ख़ुश हैं महराज
नगर दुल्हन-सा सज गया, इस चुनाव के ब्याज।

615.
राजा जिनकी पीठ पर, हाथ रहा है फेर
दो कौड़ी के लोग वे, चलते बनकर शेर।

616.
पतझर जब खेने लगा, मौसम का जलयान
तब पिछली सरकार के, मिटने लगे निशान।

617.
किसकी नैया तैरती, किसमें कितने छेद
नहीं छिपा है वक़्त से, सबका स्याह सफेद।

618.
चिह्न स्वास्तिक के मिटे, शंख हो गये मौन
बंदनवारों की व्यथा, अब सुनता है कौन?

619.
जब पथरायी भूमि पर, गयी सर्जना डूब
डैने फैलाये मिली, दोहे जैसी दूब।

620.
कुर्सीवाले कर रहे, सत्ता का उपभोग
इसीलिए अब आदमी, से डरते हैं लोग।

621.
यह माटी किस घाट की, किस नदिया का नीर
किस कुम्हार के हाथ का, घट मैं, बोल फकीर?

622.
खैनी खाये खाट पर, खटकते ही द्वार
दादा मिलते थे मुझे, ले आसीस हजार।

623.
खेत बिका, डेहरी बिकी, चुके बुआ के बोल
बचपन बरफी की डली, वह संदूक न खोल।

624.
शंखनाद जैसे पिता, छड़ी उठाये हाथ
माँ ममता की आरती, करती जिनके साथ।

625.
बड़े हुए नाहक हुए, हम हो गये खजूर
अपनों को छाया नहीं, अपनेपन से दूर।

626.
यह घर शुष्क बबूल का, यहाँ न सुख को ठौर
उड़ जा रहे शुक! यहाँ से, आम्रकुंज हैं और।

627.
नागफनी मेरी प्रिया, मैं बबूल का पेड़
काँटों में रमते हुए, अब हो चला अधेड़।

628.
उजड़ी कुटिया यक्ष की, दहकी मन की फूस
यहीं जल मरी यक्षिणी, यही घाट मनहूस।

629.
बरगद के नीचे बसा, था नृसिंह का गाँव
खिसक-खिसक कर हो गया, वही गाँव खिसराँव।

630.
नहरों का पानी पिया, ख़ाकर जामुन आम
दिन-दुपहर घूमे-फिरे, होता न था जुकाम।

631.
वह सोहर कजरी कहाँ, कहाँ पहाड़ी गीत
नशा-वासना-फ़िल्म का, अब मारक संगीत।

632.
आग लपेटे है हवा, बिच्छू जैसी धूप
धूल सने, टूटे पड़े, पानी माँगे कूप।

633.
नेह-रतजगे, व्रत-नियम, उत्सव सभी निरर्थ
धर्म-मोक्ष औ’ काम के, भी पीछे है अर्थ।

634.
बच्चे दादा की छड़ी, दादी की आसीस
माँ की छाती, बाप के, दिन भर श्रम की फीस।

635.
बिस्किट, टॉफी, दूध की, सोंधी मीठी गंध
स्नेह कथाएँ लोरियाँ, सपनों के अनुबंध।

636.
बचपन किलकारी हँसी, खिले दूध के दाँत
घर भर जाता शोर की, जब मिलती सौगात।

637.
अपनी मुट्ठी में कसे, सुख के नये रहस्य
खिलते-खिलते खुलेंगे, मन से कभी अवश्य।

638.
ये पहला कर्त्तव्य है, ये घर का ईमान
वे ही सच, ये स्नेह हैं, ये भोले भगवान

639.
बच्चे मिसिरी की डली, घर-घर खिले गुलाब
अनुशासन की आँख से, इनका लिखें हिसाब।

640.
ये घर-घर के दीप हैं, ये ही तिथि त्यौहार
ये ममता के छंद हैं, ये सुख का संसार।

641.
ढोते हैं शिशु पीठ पर, जो शिक्षा का भार
ये हैं कल के नागरिक, ये सुख का संसार।

642.
इनका मज़हब एक है, इनकी भाषा एक
अभी नहीं कुंठित हुआ, इनका सरल विवेक।

643.
आँखों में तितली बसी, मन में झूमे मोर
घर-आँगन के फूल ये, करते हर्ष विभोर।

644.
गुब्बारों के रंग से, बस उनका संवाद
क्या जानें शिशु उम्र के, दो पल का अनुवाद।

645.
अक्कड़-बक्कड़ मस्त हैं, कहते बॉम्बे गो
जोड़ रहे हम रात-दिन, अस्सी-नब्बे-सौ।

646.
ये कुरान की आयतें, ये गीता के श्लोक
ये गुरुबानी, इसलिए, इनको हर्ष न शोक।

647.
लंगी पूछने झुर्रियाँ, मन से एक सवाल
कितने मील सफ़र हुआ, तय थी कितनी चाल?


648.
कहाँ पिटा, पीटा किसे, कितने किये गुनाह
जाने कितने पल गचे, किस दिन कहाँ पनाह?

649.
नजर गड़ाये जेब पर, बेटा-बेटी-यार
जाने कब बूढ़ा मरे, कब पायें अधिकार।

650.
ये अनुभव की पुस्तकें, बीते कल के गीत
इनकी बूढ़ी साँस है, संध्या का संगीत।

651.
अभी साँस डूबी नहीं, रोशन अभी चिराग
कुलदीपक देने लगा, चिंताओं को आग।

652.
अब बच्चों की बात सुन, सह मन पर आघात
उफ मत कर, कट जायगी, तनिक बची है रात।