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ओहो! वसंत / कविता भट्ट

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1
ओहो! वसंत
मेरी व्यथाओं का भी
कर दो अंत।
2
आओ पी मेरे!
विकल मन के हों
दूर अँधेरे।
3
द्युति चमकी
अम्बर से बरसी
शान्ति मन की।
4
स्मृति के फेरे
कुछ कौड़ियाँ पिय
आँचल मेरे ।
5
तुम जो आते
संगीत रुनझुन
संग में लाते ।
6
शरद बीती
नैना बाट जोहते
गगरी रीती ।
7
मेरे मन में
रक्तिम दुःख डोरे
पिया निगोरे।
8
मैं कह लेती
कुछ निज मन की
तो सह लेती ।
9
बीते क्षण की
साँझ ही साक्षी हुई
पी रटण की ।
10
शान्त रहेंगे
नैनों के हैं वचन
नहीं बहेंगे ।

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